*आम आदमी का स्वास्थ्य चुनावी मुद्दा क्यों नही?*


*फिर भी स्वास्थ क्यों नही बन पाता चुनावी मुद्दा?*

चन्दौली।अभी पांच राज्यों के चुनाव पूरे हो गए हैं,उनके नतीजे आ गए हैं। आगामी 2022 चुनाव होने वाला है। जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल हैं,अभी कोरोना के दूसरी लहर में हजारों हजारों मौतें हुई हैं,और हो भी क्यों नहीं? सरकारी आंकड़े बताते हैं कि और यह बात किसी से छुपी भी नहीं है, कि आज भी 60% आबादी गांव में रहती है। जबकि क्वालिफाइड डॉक्टर गांव में जाना तक नहीं चाहते हैं,फिर ग्रामीण भारत में रहने वाले इन लोगों के इलाज की चिंता आखिर कौन करेगा? यह बताने को न तो सरकार तैयार हैं,न ही विपक्ष पूछने की हिम्मत जुटा पाता है। ऐसे में हमारे स्वास्थ्य की चिंता आखिर करेगा कौन?अब तो लोगो ने स्वास्थ्य को अपनी ज़िम्मेदारी मान ली है,जबकि अनुच्छेद 21 के तहत संविधान ने इसको मौलिक अधिकार माना है।राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की माने तो सरकार को अपने बजट का 8% स्वास्थ्य में खर्च करना चाहिए पर क्या ऐसा वास्तव में हो रहा है? अगर हो रहा है तो ऑक्सीजन की कमी क्यों है?वेंटिलेटर की कमी क्यों है?दवाओं की कमी क्यों है?उनकी कालाबाजारी क्यों हो रही है?न ही हमारे स्वास्थ्य की चिंता सत्ता पक्ष को चिंता है ना ही विपक्ष को। ऐसे में हम सिर्फ एक ही पुनीत कार्य कर सकते हैं कि 2022 के चुनाव में अपने प्रत्याशियों से सरकार से पूछे की स्वास्थ्य क्षेत्र में वह क्या करेंगे उनकी क्या योजना है?

कितनी अजीब बात है न आजादी के 74 साल बाद भी आम आदमी का स्वास्थ चुनावी मुद्दा नही है।